यूपी के गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी की मौत हो चुकी है।युवती से छेड़खानी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने पर पत्रकार विक्रम जोशी को बदमाशों ने सिर पर गोली मार दी थी। लखनऊ, गोसाईगंज के पत्रकार सुनील कुमार यादव पर पुलिस द्वारा सुनील के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 326/20 धारा 323, 332, 353, 504, 506, 354 अनुसूचित जाति व अनुसूचित 3/2(va) के तहत मुकदमा पंजीकृत कर दिया गया है। उनका कुसूर यह था कि उन्होंने एक खबर छापी थी कि जनता त्रस्त, अपराधी मस्त,पुलिस पस्त।’

यूपी में पत्रकारों के खिलाफ लगातार फर्जी मुकदमे हो रहा है, सरकारी मशीनरी उनको धमका रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि योगी की सरकार अब न केवल फेल हो चुकी है बल्कि हर मोर्चे पर चारों खाने चित्त है। सरकार समर्थित इनकाउंटर का एक बड़ा सिलसिला भी अपराध के रोकथाम में नाकामयाब रहा है। सवाल यह उठाया जा रहा है कि जो सरकार आम नागरिकों की, अपने पुलिसकर्मियों की रक्षा नही कर सकती वो खबरनवीसों की रक्षा क्या करेगी?

इस मामले में पुलिस अगर समय पर कार्रवाई करती तो आज विक्रम जोशी की मौत न होती। उनके भाई अनिकेत जोशी ने बताया कि तीन दिन पहले आरोपी युवकों ने उनकी भांजी पर अश्लील फब्तियां कसी थी, जिसको लेकर मारपीट भी हुई थी। भांजी के साथ हुई छेड़छाड़ की घटना की बाबत रिपोर्ट विजय नगर थाने में दर्ज कराई थी, जिसके बाद से आरोपी युवक लगातार धमकी दे रहे थे। मुकदमा होने के 3 दिन बाद तक उनके खिलाफ पुलिस द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं की गई। इसी का नतीजा था कि उन्होंने विक्रम को घेरकर गोली मार दी।

विक्रम जोशी के घर मे मातम पसरा हुआ है। यूपी के तमाम बड़े नाम वाले पत्रकार जिन्होंने पूर्व सपा शासनकाल में खूब मलाई पाई है राज्यपाल के साथ फोटो खिंचवाई है पत्रकारों की हत्या और उनके उत्पीड़न पर खामोश हैं। इनमे से ज्यादातर राज्य सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त और सुविधाभोगी पत्रकार अब भी चुप हैं। जबकि अब वक्त आ गया है कि खबरनवीस सड़कों पर उतरे। सवाल उठाया जा रहा हैओ कि एडीटर्स गिल्ड, पीसीआई, प्रेस काउंसिल, यूपी प्रेस क्लब जैसी संस्थाएं क्या बिना रीढ़ की है क्या पत्रकारों को अब यह लड़ाई व्यक्तिगत स्तर पर लड़नी होगी?

https://jansamvadonline.com/in-context/varavara-rao-and-everyone-else-in-the-cruel-rule/