“चम्बल एक्सप्रेस वे” — चंबल के बीहड़ में फोरलेन राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने का प्रोजेक्ट — वर्ष 2018 से लंबित है| यह केंद्र सरकार द्वारा निर्मित होने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग है। पहले यह एक्सप्रेस वे भिंड से शुरू होकर श्योपुर कलां (मुरैना जिले का यह हिस्सा अब नया जिला है) तक लगभग 300 किलोमीटर लंबाई में बनाया जाना प्रस्तावित किया गया था| तब इसकी लागत लगभग 500 करोड़ आंकी की गई थी| बाद में 2019 में इसकी लम्बाई कम करके इसे मुरैना जिले से श्योपुर कलां तक कर दिया गया| इस मुद्दे पर जनप्रतिनिधियों ने आपत्ति की और इसे भिंड तक ही विस्तारित करने की मांग केंद्र सरकार से की गई| हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुनः घोषणा की है कि अब यह प्रोजेक्ट “चम्बल एक्सप्रेस वे” के बजाए “चम्बल प्रोग्रेस वे” होगा और इसे भिंड तक विस्तारित किया जाएगा| इस परियोजना का पहले वर्ष 2018 में शिलान्यास हो चुका है| परन्तु मुख्यमंत्री ने कहा है कि अब इसका दोबारा से शिलान्यास भी होगा| यह मुख्यमंत्री वही है, जिन्होंने वर्ष 2007 -08 में घोषणा की थी कि कॉरपोरेट कंपनियां चम्बल की बीहड़ की जमीन पर जहां भी उंगली रख देंगी, वह जमीन उन्हें आवंटित कर दी जाएगी| उस वक़्त पांच कंपनियों को 10 हजार हेक्टेयर जमीन चम्बल के बीहड़ में आवंटित की गई, जिसमें से 2 हजार एकड बीहड़ की जमीन भाजपा के मध्य प्रदेश के औद्योगिक प्रकोष्ठ के पदाधिकारी स्थानीय उद्योगपति रमेश गर्ग को भी घडौरा (मुरैना) में आवंटित की गई| परंतु निरंतर जुझारू जन प्रतिरोध के चलते उक्त पांचों कंपनियां बीहड़ की जमीन पर कब्जा नहीं ले पायीं। अंततः समस्त 10 हजार हेक्टेयर जमीन का आवंटन रद्द करने के लिए सरकार को बाध्य होना पड़ा|
चम्बल के बीहड़ की जमीन पर मंडराते रहे हैं कॉरपोरेट गिद्ध
सन 1995 में तत्कालीन मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा चम्बल नदी के किनारे से एक किलोमीटर के क्षेत्र को घडियालों के संरक्षण के नाम पर “राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य “घोषित किया गया, जिसमें भिंड जिले की अटेर तहसील के चापक गांव से श्योपुर कलां में पार्वती एक्वाडक्ट तक लगभग 300 से ज्यादा गांवों को खाली कराने का नोटिफिकेशन जारी किया गया। इसके खिलाफ चम्बल के बीहड़ की जनता ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी व मध्य प्रदेश किसान सभा के नेतृत्व में जुझारू आंदोलन किए। दर्जनों पद यात्राएं, सैकडों प्रदर्शन, घेराव, सत्याग्रह, धरना, आंदोलन किए गए| आखिर में मजबूर होकर तत्कालीन कांग्रेस मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को यह घोषणा करनी पड़ी कि अभ्यारण के लिए चम्बल के बीहड़ की जमीन नहीं ली जाएगी। गांव खाली नहीं कराए जाएंगे| चम्बल अभ्यारण चंबल नदी के किनारे रेत तक ही सीमित रखा जाएगा। इसके बाद गांव तो बच गए, परंतु बीहड की जमीन की लूट के लिए षडयंत्र जारी रहे | इसी बीच बीहड की जमीन को अमेरिकन कंपनी मैक्सवर्थ को आवंटित किया गया। इस मामले में तत्कालीन सीपीआई(एम) महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत ने हस्तक्षेप करते हुए कृषि मंत्री चतुरानन मिश्र को पत्र लिखकर आवंटन रद्द कराने का आग्रह किया। दिल्ली में क्षेत्र के किसानों ने संसद पर प्रदर्शन भी किया। तब कहीं जाकर मैक्सवर्थ कम्पनी का आवंटन रद्द हुआ। अब फिर नए सिरे से चम्बल बीहड़ की जमीन को लूटने की तैयारी है।
प्रोग्रेस-वे नहीं, चम्बल की बर्बादी
“चम्बल प्रोग्रेस-वे” बनाने से कोई आपत्ति नहीं है| हालांकि मुरैना जिले में पहले से ही 552 नम्बर राष्ट्रीय राजमार्ग चिरगांव (झांसी ) से टॉक (राजस्थान) तक संचालित है। इसके अलावा अम्बाह केनाल जो चम्बल के बीहड़ के किनारे से निकली है, उस पर भी उत्कृष्ट सीमेंट कंक्रीट रोड निर्मित है| फिर भी यदि चम्बल के बीहड़ में से “चम्बल प्रोग्रेस वे” भिंड से श्योपुर कलां तक बनाया जाता है, तो सामान्यतः इसका विरोध नहीं है। परंतु बात इतनी सी नहीं है। यह परियोजना बीओटी (बिल्ड ऑपरेट एंड ट्रांसफर ) योजना के अंतर्गत बनाई जाएगी| इस तरह की कई परियोजनाएं देश में निर्मित होकर संचालित हैं, जिनमें से एक परियोजना मुरैना के नजदीक आगरा से दिल्ली जेपी एक्सप्रेस वे है। इन परियोजनाओं के उदाहरण से जमीन की लूट और जनता की बर्बादी को समझा जा सकता है। चम्बल एक्सप्रेस वे /चम्बल प्रोग्रेस वे फोरलेन मार्ग होगा, जिसके दोनों ओर एक-एक किलोमीटर चम्बल के बीहड़ की जमीन औद्योगिक गतिविधियों, होटल, रिसोर्ट, हाउसिंग परियोजनाओं आदि के नाम पर सड़क निर्माता कॉरपोरेट कंपनी द्वारा ली जाएगी। सरकार उक्त जमीन को अधिग्रहित कर संबंधित कंपनी को सौपेगी।
बीहड की जमीन को पीढ़ियों से चम्बल के किनारे रहने वाले केवट, निषाद, रावत, दलित, अति पिछड़े समुदाय के लगभग 500 गांवों के हजारों किसान परिवारों ने कुदाल, फावड़ा, हल और बैलों से भारी मेहनत करके समतल व उपजाऊ बनाया है, जिसमें ज्यादातर जमीन शासकीय अभिलेखों में बीहड़ शासकीय भूमि के रूप में दर्ज है। उक्त भूमि अत्यन्त उपजाऊ है| सन 1995 में उक्त भूमि पर खसरा के कालम 12 में कब्जेदार का नाम दर्ज करना भी बंद करा दिया गया है। जमीन को गरीब किसानों से छीन कर मखमली चादर से ढक कर कॉरपोरेट को परोसा जा रहा है। होना तो यह चाहिए कि उक्त जमीन के पट्टे पीढ़ियों से काबिज किसानों को ही दिए जाएं। किसान वर्षों से यह मांग शासन से कर रहे हैं। इसके साथ ही बीहड कृषिकरण के नाम पर जो करोड़ों रुपए फर्जी आहरण कर लिए जाते हैं, उन्हें भी भविष्य में बीहड की जमीन के विकास के लिए किसानों को ही दिया जाए। सड़क चंबल एक्सप्रेस-वे केंद्र व राज्य सरकार बनाएं, साथ ही बीहड की जमीन काबिज किसानों को आवंटित करें, ताकि कॉरपोरेट कंपनियां जमीन की लूट की साजिश में सफल न हो सके। वैसे भी चम्बल क्षेत्र से बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों का पलायन होता है। कोविड-19 के चलते उनकी हालत और बदहाल होती जाएगी। ऐसे में उनसे जमीन छीनकर कॉरपोरेट्स को देना नाइंसाफी होगी |
चम्बल के बीहड़ में विकास की धारा बहाने के नाम पर कारपोरेटों की लूट के लिए इसे सौंपने से पहले आवश्यकता इस बात की है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें। जाहिर है कि पिछले सारे निर्णयों की तरह इसे भी बदलवाने के लिए किसान एकजुट प्रतिरोध करेंगे। चम्बल बीहड़ हमेशा अशांत रहा है। सरकार के इस निर्णय से यह अशांति और बढ़ेगी |
साभार : अशोक तिवारी- उपाध्यक्ष (किसान सभा मध्यप्रदेश)