1 मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस समस्त विश्व के उस तबके का त्यौहार है जिसके पास बेचने के लिए अपने श्रम के अलावा और कुछ नहीं. बेशक वर्ष 2020 का मई दिवस पूरे विश्व में कोरोना वायरस के लॉकडाउन के चलते सीमित रूप से ही मनाया जायेगा लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में इसका महत्व अपेक्षाकृत ज्यादा है. विशेषकर असंघटित क्षेत्रों के मजदूर वर्ग के लिए यह अपनी वर्गीय पहचान को स्पष्ट करने का अवसर है. संकट की इस घड़ी में इस वर्ग के पास राष्ट्र को देने के लिए गहने नहीं अपितु संयम था जो उसने तमाम किल्लतों के बावजूद बनाये रखा. लेकिन लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद उसके तवे पर भरपेट रोटी सिकने लगेगी इसकी संभावनाएं फिलहाल अस्पष्ट हैं. तमाम दिक्कतों के भंवर से सकुशल निकल जाने के बाद यदि मजदूर वर्ग अपनी पांतों में एकता लाने का प्रयास नहीं करता तो उसकी थाली सिर्फ बजाने के ही काम आने वाली है. मई दिवस के अवसर पर अनेक चर्चाएँ, व्याखान, रैली आदि करने की परंपरा रही है जिसमें मजदूरों की परिस्थितियों से लेकर पूँजीवाद को कोसने के सालाना अनुष्ठान होते हैं लेकिन अब समय है कि खुद मजदूर आन्दोलन में व्याप्त दोषों पर भी ध्यान दिया जाए.
कोरोना वायरस सम्बन्धी लॉक डाउन के दौरान राहत कार्यों में जुटे इंटरनेशनल खालसा ऐड के सेवादार इंदरजीत सिंह का भटिंडा के पास गत 20 अप्रैल को घटित एक दुर्घटना में देहांत हो गया. इंदरजीत सिंह मूलरूप से देहरादून से थे और राहत सेवा को किसी मज़हब या क्षेत्र के चश्मे से नहीं बल्कि मानवीय आधार पर करने वालों में शामिल थे. मई दिवस के अवसर इंदरजीत को समर्पित यह विडियो मानव मूल्यों के लिए समर्पित उसी बिरादरी का स्मरण है जिसमें अनेक कोरोना वारियर भी शामिल हैं.
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