घर पर रहकर की भूख हड़ताल को आधार बना कर दर्ज किया गया पर उकसाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया है। पुलिस ने यह मुकदमा धारा 188, 269, 270 और आपदा प्रबंधन एक्ट 51 के तहत दर्ज किया है। यह मुकदमा , दिनांक 23 अप्रैल 2020 को देश में विभिन्न जगहों पर फंसे हुए मजदूरों और छात्रों की संक्रमण की जांच कर , उन्हें घर तक पहुंचाने की व्यवस्था करने और देश के सभी गरीब मजदूरों-मेहनतकशों और छात्रों के लिए राशन और आर्थिक मदद की तत्काल व्यवस्था करने की मांगों को लेकर उनके द्वारा पछास की , की गई अपील पर सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक अपने घर पर रहकर की भूख हड़ताल को आधार बना कर दर्ज किया गया । उनके अलावा पछास के समर्थक छात्रों और लोगों ने भी अपने-अपने घरों में रहकर हड़ताल की । निश्चय ही यह भूख हड़ताल न तो गैर कानूनी और न ही किसी भी तरह से लॉकडाउन का उल्लंघन कही जा सकती है , जिसे आधार बना कर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दिया। यह बात आश्चर्य की प्रतीत होती है कि पुलिस को यह काम उकसाने का काम लगता है।
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छात्रों और मजदूरों की संक्रमण की जांच कर , उन्हें उनके घरों तक पहुंचाने की मांग कोई ऐसी मांग नहीं है जिस के आधार पर किसी पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाया जा सके, जिसके लिए पुलिस के द्वारा छात्र नेता श्री मुकेश पर मुकदमा दर्ज कियागया है।
देश के गरीबों, मजदूरों और विभिन्न स्थानों पर फंसे छात्रों के लिए राशन की व्यवस्था करने की मांग करना , लॉकडाउन में फंसे मजदूरों व छात्रों के प्रति संवेदना प्रकट करना, उनके कष्टों की बात करना, उनकी बेहतरी की चिंता करना किसी भी दशा में अपराध नहीं कहा या माना जा सकता है । कोरोना संकट के नाम पर सत्ताधारियों को खुश करने के लिए या उनके इशारे पर यह सीधे सीधे अभिव्यक्ति की आजादी पर की गई दमनात्मक पुलिस कार्यवाही है जिसका हम सभी संगठन /जागरूक नागरिक बिरोध करते हैं और उत्तराखण्ड सरकार से मांग करते हैं कि वे तत्काल श्री महेश को रिहा करें और दोषी पुलिस अधिकारियों को उनकी ऐसी अवैध कार्यवाही के लिए दंडित भी करें ।
पुलिस की यह दमनात्मक कार्यवाही किसी भी व्यक्ति के लोकतांत्रिक अधिकार पर हमला भी है, जिसमें वह अपने और दूसरे के अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर सकता है। हम उत्तराखण्ड सरकार से यह भी अनुरोध करते हैं कि वह यह भी स्पष्ट करे कि क्या उसने कोरोना संकट में सभी नागरिकों के विरोध करने के लोकतांत्रिक अधिकार को भी खत्म कर दिया है?
उत्तराखंड महिला मंच, स्वराज अभियान, स्त्री मुक्ति लीग, नौजवान भारत सभा, पीपुल्स फोरम, भार्गव चन्दोला, गीता गैरोला, अश्विनी, बिक्रम, जयकृत कंडवाल, कैलाश, गुलफाम, निर्मला बिष्ट, पद्मगुप्त, कविता कृष्ण पल्लवी, कमला पंत आदि ने इस घटना पर अपना विरोध जताया .
कहीं पे निगाहें , कहीं पे निशाना ….. जानने के लिए अगला लेख पड़ें ….
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