उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की अभी तक दो हजार से ज्यादा घटनाएं सामने आ चुकी है। जिनकी चपेट में आकर 3232 हेक्टेयर जंगल जल चुका है।रविवार यानी पर्यावरण दिवस के दिन राज्य में 15 हेक्टेयर जंगल को नुकसान पहुंचा। फायर सीजन खत्म होने में अभी दस दिन और बाकी है। बढ़ते पारे और बारिश की संभावना कम होने के कारण वन विभाग को और ज्यादा सतर्क होना पड़ेगा।
15 फरवरी से 15 जून तक का समय पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील माना जाता है। इन चार महीनों में जंगल में आग की घटनाएं तेजी से बढ़ती है। जंगल में नमी खत्म होने पर जाने-अनजाने या शरारती तत्वों की तरफ से लगाई गई आग विकराल रूप धारण कर लेती है। इस सीजन में सबसे ज्यादा नुकसान अप्रैल में हुआ। एक महीने में 2700 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आया। वन विभाग के मुताबिक कुमाऊं में 1587.05, गढ़वाल में 1273.75 और वन्यजीव आरक्षित क्षेत्र में 371.27 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हो चुका है। इन घटनाओं में पर्यावरणीय क्षति का आंकड़ा 84 लाख को पार कर गया। हालांकि, मौसम में बदलाव होने के कारण मई में ज्यादा चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा। मई में बारिश होने के कारण राहत का सिलसिला बढ़ता चला गया। छुटमुट मामलों को छोड़ कहीं कोई बड़ी घटना नहीं हुई।
अब विभाग को जून के 15 दिन बीतने का इंतजार है। मौसम के साथ देने पर ही जंगल बचे रहेंगे। जंगलों में धधक रही आग से बेशकीमती वन सम्पदा तो खाक हो ही रही है, साथ ही वन्य जीवों का जीवन भी संकट में आ गया है. हालात ये हैं कि जंगली जानवर जिंदगी बचाने के लिए रिहायसी इलाकों की ओर कूच करने को मजबूर हैं. यही नहीं कई जीव-जन्तु फॉरेस्ट फॉयर की भेंट भी चढ़ गए हैं. वैज्ञानिक की मानें तो लगातार बढ़ रही आग की घटनाओं से जहां पर्यावरण को खासा नुकसान हो रहा है, वहीं प्राकृतिक जलस्रोतों को भी इससे खासा नुकसान हो रही है. यही नहीं हिमालय की जंगलों की जैवविविधता के लिए ये आग किसी खतरे से कम नहीं है. धधक रही आग से बेशकीमती वन सम्पदा खाक हो रही है, साथ ही खराब हो रहा पर्यावरण कई बीमारियों को भी न्यौता दे रहा है.
अब सवाल ये है कि हर साल बढ़ रही फॉरेस्ट फॉयर की घटनाओं को देखते हुए भी आखिर वन महकमा अभी तक कोई ठोस प्लान क्यों तैयार नहीं कर पा रहा है रिकॉर्ड पैमाने पर इस बार पहाड़ी इलाकों में जंगल धधक रहे हैं, वैसा शायद ही कभी हुआ हो.उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग हो रही विकराल, वन विभाग नाकाम, वन्य जीवों के जीवन पर संकट आंकड़ा जाहिर करता है कि किस तरह साल-दर-साल प्रदेश में बहुमूल्य वन संपदा जलकर राख हो रही है. इसकी रोकथाम के लिए कुछ खास नहीं किया जा सका है. उधर, अभी 15 जून तक वनों में आग की घटनाओं के और भी तेजी से बढ़ने की आशंका जाहिर की जा रही है. जबकि जिस तरह इस बार करीब 60 फीसदी तक बारिश कम आंकी जा रही है. अचानक तापमान में भी कई डिग्री की बढ़ोतरी देखी गई है. उससे ऐसी घटनाओं में वृद्धि होने की उम्मीद बेहद ज्यादा है.
जंगलों में आग की घटनाओं से बचने के लिए सबसे पुराना और बेहतरीन तरीका फायर लाइन है. फायर सीजन आने से पहले ही फायर लाइन तैयार की जाती है. ताकि आग की घटना होने पर फायर लाइन के आगे जंगलों को बचाया जा सके. इसके अलावा स्थानीय लोगों और ग्रामीणों का सहयोग लेकर भी आग की घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है. स्थानीय लोगों में जागरूकता भी आग की घटनाओं पर रोकथाम के लिए बेहद कारगर हो सकती है. आग की घटना होने पर रिस्पॉन्सस टाइम को कम करके भी ज्यादा नुकसान से बचा जा सकता है वन विभाग आग पर कर्मचारी तैनात करने की बात तो कर रहा है, लेकिन कोई ठोस प्लान आग की घटनाओं को रोकने का वन विभाग के पास भी नहीं है.!
लेखक के निजी विचार हैं
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला (दून विश्वविद्यालय )
लगातार जंगलों का ह्रास होने से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। वहीं इसका सीधा प्रभाव जलवायु में हो रहे परिवर्तन, मृदा से नदारद होती नमी आदि हैं। अब भी पर्यावरण संरक्षित नहीं हो सका तो 2030 में पृथ्वी का तापमान 2.7 डिग्री तक बढ़ने की भी आशंका है।
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