डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में पिछले 20 वर्षों में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के तहत 14 हजार किमी से अधिक की सड़कों का निर्माण हो चुका है, लेकिन बजट के अभाव में इनकी देखरेख नहीं हो पा रही है। उत्तराखंड समेत कई राज्यों में ग्रामीण सड़कों की देखरेख एक बड़ी चिंता रही है। गांवों में उन ग्रामीण सड़कों को योजना में प्राथमिकता दी जाएगी, जो ब्लाक, तहसील व जिला मुख्यालयों से जुड़ती हैं। जिन सड़कों पर यातायाता अधिक दबाव हैं। ऐसी सड़कें जो स्थानीय खेती और उद्यानिकी, आजीविका आधारित कार्यों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती हैं। वे सड़कें जो अस्पताल, कॉलेज व अन्य शिक्षण संस्थानों से जुड़ी है।
उत्तराखंड की 250 ग्रामीण सड़कों का कोई देख- रेख करने वाला नहीं। ये सड़कें प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनी थीं, इसमें कुछ तो 10 से 15 साल पहले से बिना रख रखाव के बदहाल पड़ी हुई हैं। ग्रामीण सड़कों का निर्माण मुख्य रूप से पीएमजीएसवाई के तहत होता है निर्माण की शर्त के मुताबिक शुरुआती पांच साल तक इन सड़कों की मरम्मत का काम संबंधित ठेकेदार करता है। इसके बाद इन सड़कों पर पीएमजीएसवाई का स्वामित्व समाप्त हो जाता है।
कायदे से इसके बाद इन सड़कों को नियमित देख-रेख के लिए लोनिवि को लेना चाहिए, लेकिन लोनिवि सड़कों को ले नहीं रहा है। इस कारण पूरे प्रदेश में 250 सड़कें बिना रख-रखाव के बदहाल पड़ी हुई हैं। जिसकी कुल लंबाई 1842 किमी है। उक्त सभी सड़कें निर्माण के पांच साल पूरा कर चुकी हैं। जिस कारण कुछ पर अब यातायात भी बंद है। पीएमजीएसवाई के एस.ई. के मुताबिक एजेंसी के पास रख-रखाव का बजट नहीं होता है। उनका मूल काम सड़क विहीन गांवों को मुख्य सड़क से जोड़ने का है। शुरुआती पांच साल के बाद इन सड़कों को रख रखाव के लिए लोनिवि को सौंप दिया जाता है, इसके लिए विभाग को पत्र लिखा गया है।
सहस्त्रधारा-चामासारी सड़क 15 साल पहले बन गई थी, लेकिन दोबारा इस सड़क पर डामरीकरण नहीं हो पाया। पूर्व प्रधान ने बताया कि सड़क पर दो हादसे भी हो चुके हैं, जिसमें दो लोगों की मौत हुई है। यही हाल सेरकी-सिल्ला और धारकोट तलाई का भी है। घनसाली तहसील के छतियारा-खवाड़ा मोटरमार्ग 2012 में बनने के बाद से बदहाल पड़ा हुआ है। 19 किमी लंबी सड़क से 32 गांव जुड़ते हैं। सड़क पर गहरे गड्ढे पड़ने के साथ ही दीवारें भी क्षतिग्रस्त हो गई हैं। पिछले साल यहां वाहन दुर्घटना में चार लोगों की मौत हो चुकी है।
2010-11 में तूना-बौंठा मोटर मार्ग का निर्माण पूरा हुआ। इसके करीब 10 साल से अधिक का वक्त गुजर जाने के बाद भी सड़क की र्दुदशा हो रही है। पीएमजीएवाई के ईई ने बताया कि लोनिवि को हैंडओवर होने के लिए संयुक्त निरीक्षण किया गया है किंतु अभी आगे की कार्रवाई नहीं हो पाई है। 2013 में बनकर तैयार हुई कोट – बागी सड़क की कुल लंबाई 10 किमी है। इसका लाभ पांच गांव की पांच हजार आबादी को मिलता है। बनने के नौ साल बाद भी सड़क डामरीकरण का काम पूरा नहीं हो पाया। 21 किमी लंबी जखोल – लिवाड़ी सड़क पर 2013 में काम शुरू हुआ, अब तक 15 किलोमीटर सड़क ही बन पाई है। अमोठा डोबल मोटर मार्ग का निमार्ण 2011 में हुआ था। आठ किमी लंबी सड़क का लाभ करीब 600 की आबादी को मिलता है। सड़क पर पिछले पाँच साल से किसी भी प्रकार के रख रखाव नहीं हुआ है। सड़क का अधिकांश भाग झाड़ियों से घिरा है।
2013-14 में थराली- कुराड़ – पार्था मोटरमार्ग का निर्माण शुरू हुआ था। कुल 17 किमी लंबी सड़क महज एक साल के भीतर ही गड्ढों तब्दील हो गई। कुराड़ के प्रधान का कहना है कि बरसात के दिनों में स्क्रबर बन्द होने के चलते पानी सड़क पर बहने लगता है। जिले में पीएमजीएसवाई की छह सड़कें बगैर रख रखाव के चल रही है। इसमें मंच-नीड़ मार्ग का निर्माण 2014-15 में किया गया था। इसी तरह हरम – रमेला, खर्क कार्की-मुड़यिानी मार्ग, लिपुलेख भिंड-पचपकरिया मार्ग, किमतोली-खतेड़ा मार्ग, डुंगराबोरा-कायल-मटियानी भी बदहाल है। 25 किमी लंबा वल्थी-तोमिक मार्ग का निर्माण 2018 में हुआ। इस सड़क से वल्थी, गैला, राप्ती, पत्थरकोट, तोमिक गांव जुड़े हुए हैं। 16 करोड़ लागत वाले मार्ग का निर्माण कार्य तो पूरा हो चुका है, लेकिन अब तक डामरीकरण नहीं हुआ है। किठियारौली के पास पुल भी नहीं बन पाया है।
थपलियाल गांव से कालेश्वर की तक की 24 किमी लंबी सड़क भी बदहाल है। उत्तराखंड में पिछले 20 वर्षों में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के तहत 14 हजार किमी से अधिक की सड़कों का निर्माण हो चुका है, लेकिन बजट के अभाव में इनकी देखरेख नहीं हो पा रही है। उत्तराखंड समेत कई राज्यों में ग्रामीण सड़कों की देखरेख एक बड़ी चिंता रही है।
पहले व दूसरे चरण की योजना में सड़कों की मरम्मत और सुधारीकरण के लिए धनराशि की व्यवस्था नहीं थी। लेकिन अब केंद्र सरकार ने तीसरे चरण की योजना में प्रमुख ग्रामीण सड़कों की मरम्मत का प्रावधान किया है। इसके लिए बाकायदा दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। दिशा-निर्देशों के आधार पर सड़कों के चयन के लिए बाकायदा सर्वे होगा।
प्रदेश में 2023-24 तक 2400 किमी सड़कों का चयन होना है। इनमें से 1600 किमी का चयन इसी साल हो जाएगा। बाकी 800 किमी सड़कें अगले साल चुनी जाएंगी। सड़कों के सर्वे के लिए तीन प्रमुख एजेंसियां तैनात की गई हैं। उत्तराखंड के गांवों की सड़कों का उद्धार होने की उम्मीद जगी है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के तीसरे चरण के तहत प्रदेश सरकार ने तय किया है कि वह 2400 किमी सड़कों का कायाकल्प करेगी। जिन सड़कों का उद्धार किया जाना है, उनकी पहचान के लिए सर्वेक्षण कार्य शुरू हो चुका है। सर्वे का कार्य पूरा होने के बाद सड़कों के सुधारीकरण के बजट के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजे जाएंगे।
यहाँ दिक्कत वाली बात यह है कि उत्तराखंड की विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों, पर्वतीय क्षेत्रों में भारी बारिश, अत्यधिक ठंड तथा सड़कों के लिए वन और पर्यावरण संबंधी स्वीकृतियों आदि में समय लगने के कारण निर्माण कार्यों के लिये मिलने वाले कम समय के मद्देनजर प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के कार्यों को पूर्ण करने की समय सीमा केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की निर्माण एजेंसी को निर्देशित किया है कि 30 सितंबर के बाद राज्य में नई सड़कों के निर्माण के लिए धनराशि नहीं दी जाएगी। मात्र सड़कों के डामरीकरण और रखरखाव का बजट रिलीज किया जाएगा। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर केंद्र सरकार सड़कों के निर्माण के लिए बजट रिलीज नहीं करती है तो प्रदेश सरकार पर सड़कों के निर्माण समेत संबंधित विभागीय खर्चे के लिए अतिरिक्त भार पड़ेगा। साथ ही कई सड़कों का पूरा कार्य भी अधर में लटक सकता है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के मुख्य अभियंता आर.पी. सिंह ने फोन पर बताया कि अभी योजना के तहत 800 सड़कों का निर्माण कार्य चल रहा है। जो कि कुछ प्रथम और कुछ द्वितीय चरण में हैं। केंद्र सरकार की डेडलाइन के अनुसार विभाग ने सितंबर महीने तक 600 सड़कों का निर्माण पूरा करने का लक्ष्य रखा है। अन्य 200 सड़कों के निर्माण को पूरा करने के लिए विभागीय मंत्री की ओर से केंद्र सरकार को मार्च तक डेडलाइन बढ़ाने की मांग की है। उम्मीद है कि केंद्र सरकार की ओर से डेडलाइन पूरी करने के लिए समय बढ़ाया जाएगा। इस सब के इतर यह सवाल उठता है कि अगर केंद्र सरकार डेडलाइन नहीं बढ़ाती है तो कई गांवों के सड़क से जुड़ने का सपना अधर में लटक सकता है।
बता दें कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना भारत में एक राष्ट्रव्यापी योजना है, जिसके तहत सड़क विहीन गांवों तक अच्छी सड़क पहुंचाना है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत उत्तराखंड में साल 2000 में प्रथम और द्वितीय चरण में 250 से अधिक आबादी में वाले 1867 गांवों का चयन किया गया था। जिसमें से करीब 1800 गांव सड़क से जुड़ चुके हैं। वहीं केंद्र सरकार की डेडलाइन के बाद अब संबंधित विभाग के सामने यह परेशानी खड़ी हो गई है कि कैसे बची हुई सड़कों का निर्माण पूरा किया जाए ? क्योंकि, अब जून महीने से जुलाई अगस्त तक प्रदेश में मॉनसून के कारण निर्माण कार्य होना बहुत मुश्किल होता है। हालांकि, राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार से डेडलाइन बढ़ाने के लिए मांग की गई है, लेकिन इस पर केंद्र सरकार सहमति देती है यह कहना तो अभी मुश्किल है।
यह लेखक के निजी विचार है।
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