वर्ष 1995 में मुजफ्फरनगर कांड की बरसी मनाने के लिए सैकड़ो आंदोलनकारी धर्मपुर स्थित रिस्पना पुल पर जमा थे जिसमें अमित ओबराय भी शामिल था। प्रदर्शन चल ही रहा था कि अचानक उत्तर प्रदेश पुलिस ने दोनों ओर से  घेर कर  लाठी चार्ज कर दिया जिससे वहां जबरदस्त भगदड़ मच गई और उसी का शिकार होकर देहरादून का अमित रिस्पना पुल से नीचे गिर गया और उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई।
इस  घटना को आज 23 साल हो चुके हैं। तब से  अमित बिस्तर पर ही जिंदगी की जंग लड़ रहा है। उनके कंधे से नीचे का पूरा शरीर बेजान हो गया है।
इन सबके बावजूद अमित में जीने कीइच्छा बाकि  है। उसे मलाल है तो सिर्फ इस बात का कि वह अपने इलाज  का खर्चा आखिर कितने दिनों तक उठा  पाएगा ?  इलाज और तीमारदारी पर बड़ी रकम हर महीने खर्च हो रही है।  बकौल अमित, सरकार से उन्हें आंदोलनकारी कोटे की 10 हजार रुपये पेंशन मिलती है, लेकिन ये नाकाफी है। वह यही चाहते हैं कि उनके इलाज का खर्च सरकार उठाए ताकि उनकी बूढ़ी मां को कुछ राहत मिल सके।
लगभग 41 साल के अमित प्रगति विहार में रहते हैं। उन्हें दो अक्तूबर 1995 की घटना का एक-एक क्षण याद है। कहते हैं कि तब वह 11वीं का छात्र था। आंदोलन अपने चरम पर था।
आंदोलनकारी बड़ी संख्या में मुजफ्फरनगर कांड की बरसी मनाने इकट्ठा हुए थे। सब जगह बंद था। बड़ी संख्या में पुलिस बल भी वहां तैनात था। खूब नारेबाजी हो रही थी। तभी पुलिस के जवान पुल के दोनों से लाठियां भांजते हुए आंदोलनकारियों पर टूट पड़े। पुल पर भगदड़ मच गई। पुल के पास खड़ा मैं अचानक नीचे गिर गया।

मुझे इलाज के लिए कोरोनेशन अस्पताल ले जाया गया। वहां पीजीआई चंडीगढ़ रेफर किया गया। वहां एक महीने इलाज के बाद मैं घर लौट गया। तब से न जाने कितने उतार-चढ़ाव देखे हैं आंदोलन के दौरान दो लोग पूर्ण विकलांग हुए, उनमें से एक हैं अमित

पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी से लेकर खंडूड़ी, निशंक, विधायक हरबंस कपूर और न जाने कितने नेता उनके यहां आए। जब त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री नहीं थे, कई बार मेरे घर आए। लेकिन आज कोई नहीं आता।  आंदोलनकारी संगठनों के बारे में उनका कहना है कि वह लोग सिर्फ अपने राजनितिक स्वार्थ के लिए ही धरना -प्रदर्शन करते हैं, जिंदा आंदोलनकारियों से ज्यादा उन्हें अब शहीदों की रहती है ठीक है इनकी आत्मा की शांति के लिए भी होना चाहिए मगर कभी हम जैसों की सुध लेने भर को भी लेने आ जाएं तो हौसला बढ़ता है ।
फेसबुक पर काटता है समय ।
अमित फेसबुक के जरिए दुनिया से जुड़े हैं। उन्होंने दुनियाभर के उनकी हालत वाले 150 लोग ढूंढ निकाले हैं। ये सभी सोशल मीडिया पर बातें करके एक-दूसरे का हौंसला बढ़ाते हैं। उनकी बीमारी सी जुड़ी चिकित्सा क्षेत्र की नई अनुसंधानों के बारे में अनुभव साझा करते हैं। फेसबुक चलाने के लिए वे ध्वनि पहचानने वाले साफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं।