राज्य निर्माण के जन आंदोलन की के 26 वर्ष पूर्व आज ही पहाड़ के गांधी स्व०इंद्रमणि बड़ोनी द्वारा मिल का पत्थर साबित हुआ जो जन आंदोलन के बदौलत उत्तराखंड राज्य सौग़ात में हमे मिला।
देहरादून दिनाँक 02- 08- 2021: उत्तराखंड राज्य की मांग देश की आजादी के बाद मंचों व कुछ नेताओं के द्वारा उठती रही। लेकिन राजनीतिक मुद्दा को लेकर उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना सन 1979 में पृथक उत्तराखंड लेकर आया। जिसके प्रथम अध्यक्ष महान वैज्ञानिक डॉ डी०डी०पंत जी बनें। उत्तराखंड क्रांति दल ने पृथक उत्तराखंड राज्य के लिये संघर्ष अनवरत करता रहा। सन 1981 में देवप्रयाग से 3 बार के विधायक रहे श्री इंद्रमणि बडोनी जी उक्रांद में शामिल हुये व राज्य आंदोलन को अपने हाथों में लेकर तेज किया। इसी दौरान उत्तराखंड के पहाड़ी भूभाग में वन अधिनियम 1980 के कारण निर्माण विकास कार्य अवरुद्ध हो रहे थे। विशेषकर नये सड़कों का निर्माण नही हो पा रहा था। उक्रांद ने वन अधिनियम का घोर विरोध किया। यहां तक कि उक्रांद के नेताओं पर वन अधिनियम के तहत सैकड़ो मुकदमें दर्ज हुये। नशा नही रोजगार का दूसरा नारा यूकेडी ने 80 के दशक में ये नारा देकर अलग उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन को धार दी। सन 1992 को 13 जनवरी उत्तरायणी बागेश्वर मेले में राज्य का खाका तैयार करके जारी किया। जिसमें राज्य की राजधानी* वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर चंद्र नगर गैरसैंण किया। ये खोज उत्तराखंड क्रांति दल की थी।
आज के ही दिन को पहाड़ के गांधी के नेतृत्व में 7 साथियों सहित उत्तराखंड राज्य के लिये पौड़ी में भूख हड़ताल शुरू की। जो 26 वर्ष पूर्व बड़ोनी जी की भूख हड़ताल जनांदोलन के तब्दील होकर उत्तराखंड राज्य के निर्माण की इबारत लिखी। जिसकी परिणति हुई कि 9 नवम्बर 2000 को यह इबारत से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया।