गढवाल रियासत के 52 गढ़ों में एक गढ़ है रानीगढ़। जहाँ मान्यता है कि इस गढ़ पर राजा का नहीं रानी का शासन होता था।आज भी इस क्षेत्र की दो महत्वपूर्ण पहचान है।पहली पहचान इस क्षेत्र की आराध्य माँ हरियाली देवी का मंदिर। जिसके दर्शनों के लिए आपको सप्ताह भर पहले शाकाहारी बनना पडता है।यहाँ तक कि आप लहसुन एवं प्याज का सेवन करके नहीं जा सकते। माँ भगवती शुद्ध शाकाहारी है।दूसरी पहचान आदरणीय श्री जगत सिंह जंगली जी के 40 वर्षों के भागीरथ प्रयास से निर्मित मिश्रित वन। जिसमें अनेक किश्म के पेड़-पौधे हैं। हालांकि इस जंगल की समुद्र तल से दूरी लगभग 4000 फिट है परंतु इसमें उच्च हिमालय में 7000 फिट तक होनें वाली सारे पेड़-पौधें एवं वनस्पतियां हैं।पाँच हेक्टेयर में फैलै इस जंगल में विभिन्न प्रकार की जैवविविधताओं में होनें वाली पेड़-पौधों एवं वनस्पतियों की प्रजातियों के दर्शन एक साथ हो जाते हैं। जिसमें बाँज, बुराँश, चीड़ एवं देवदार तो हैं ही। साथ में चमखड़ीक एवं कस्तूरी मृग का भोजन नैरपाती भी है।यहाँ अरुणाचल प्रदेश का गामन है तो चायनीज बम्बो भी है। मथुरा का कदंब है तो छोटी-बड़ी इलायची के असंख्य पौधे हैं।इसमें पान के पत्ते, चायपती,हल्दी,हेहड़,पूनेर भी हैं।जंगली जी के जंगल से तो परिचय पुराना था परंतु सौभाग्य से जंगली जी से आज ही हुआ।जंगली जी BSF में सेवा में थे। जब भी घर आते तो पशुओं को चारे के लिए महिलाओं को बहुत दूर तक जाना पड़ता।इस समस्या के निवारण के लिए सेवाकाल में ही जंगली जी ने अपनी बंजर जमीन पर वृक्षारोपण प्रारंभ किया।जो आज देश,समाज एवं भविष्य की पीढी के लिए मिसाल है।जंगली जी पर्यावरण को लेकर चिंतित हैं।आज उनके गृह जिले रुद्रप्रयाग में 51 जलश्रोत सूख चुके हैं।उनके अनुसार इसका पहला कारण केवल चीड़ के जंगल हैं।अगर हमारे वन मिश्रित वन होते तो ऐसा दिन न आता।दूसरा कारण हिमालय में आने वाली असंख्य भीड़।जिसमें पर्वतारोही,पर्यटक, धार्मिक व्यक्ति और पिकनिक बाज हैं। अगर इनकी रफतार ऐसीं ही रही तो तो चारधामों ,गंगा एवं हिमालय के लुप्त होनें का दिन दूर नहीं।अभी कुछ दिन पहले औली बुग्याल में होनें वाली शादी से वे खासे नाराज हैं।उनका मानना है जंगल एवं बुग्याल शांति में फलते-फूलते हैं।इसको बचाने के लिए हमारे पूर्वज वहाँ भारी भीड़ नहीं लगाते थे।इसलिए वनदेवता एवं वनदेवीयों की मान्यता थी।जिसे आज हमारे नेता और समाज विकास के नाम पर बर्बाद कर रहे हैं।जंगली जी का मानना है कि उत्तराखंड के पास खोने एवं पाने के लिए समान प्रकार की चीजें हैं।जो है स्वच्छ पानी,भोजन एवं हवा।इसका संरक्षण हर नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है। कई मित्र जो औली शादी को लेकर कई दिनों से सोशियल मीडिया में सक्रिय हैं दुखद अधिकांशो ने जीवन में शायद एक पौधा भी न लगाया हो।
जंगल के हैं तीन उपहार –
मिट्टी,पानी और बयार- स्व.कुंवर प्रसून।