इस स्थिति को देख कर आज ये ही गाना याद आया है, पल भर के लिए कोई हमे प्यार कर ले, झूठा ही सही. जिस प्रकार आज दिहाड़ी मजदूरों की ये दशा है, जो अपने गणतवयों की तरफ प्रस्थान कर रहे हैं, भूखे प्यासे होने के बावजूद, चलते जा रहे हैं, किसी के हाथों में, तो किसी के कांधों पर इस देख का कहेंने वाला भविष्य, तो किसी की कोख में, कोई रोटी को मोहताज, कोई पानी को. क्या ये व्यथा अदृश्य प्रतीत सी नहीं होती. सरकारें कह रही है, जहां हो वहीँ रहो, जैसे हो वैसे ही रहने दें क्या, या फिर इनको ऐसे ही मरने दें. कुछ को खयाल करो, ये तुम्हारे अपने ही तो हैं, है ना…..