हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
फाॅरेस्ट चीफ को लेकर चल रही विभाग में तनातनी
देहरादून,17 अप्रैल : उत्तराखंड वन विभाग में फॉरेस्ट चीफ को लेकर चल रही तनातनी में एक और नया मोड़ आ गया है। दरअसल हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में डाली गई एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को स्टे कर दिया है।
उत्तराखंड वन विभाग में फॉरेस्ट चीफ के तौर पर आईएफएस अफसर राजीव भरतरी और विनोद सिंघल के बीच कोर्ट में चल रही लड़ाई अब नया मोड़ ले चुकी है। दरअसल अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया है। जिसके बाद फॉरेस्ट चीफ राजीव भरतरी के पद पर एक बार फिर संकट खड़ा हो गया है। आपको बता दें कि कॉर्बेट नेशनल पार्क में हुई वित्तीय अनियमितताओं के मामले में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने कार्रवाई करते हुए तत्कालीन फॉरेस्ट चीफ राजीव भरतरी को उनके इस पद से हटा दिया था। उनकी जगह आईएफएस अफसर विनोद सिंघल को यह जिम्मेदारी दी गई थी। इस मामले में राजीव भरतरी ने पहले कैट का दरवाजा खटखटाया। वहां से उनके पक्ष में निर्णय हुआ। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में जाकर फॉरेस्ट चीफ के तौर पर अपनी पुनः नियुक्ति को लेकर आदेश पा लिया।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार को भी राजीव भरतरी को वन विभाग का मुखिया बनाना पड़ा। लेकिन जहां 4 अप्रैल को राजीव भरतरी ने फॉरेस्ट मुखिया के तौर पर चार्ज संभाला तो 6 अप्रैल को विनोद सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ एसएलपी दायर कर दी। अब ताजा खबर यह है कि हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया है। जिसके बाद अब राजीव भरतरी फॉरेस्ट चीफ बने रहेंगे, इस पर प्रश्नचिन्ह लग गए हैं। इस मामले में वन विभाग के सचिव विजय यादव से बात की तो उन्होंने कहा कि फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की तरफ से किए गए स्टे की कॉपी उनके पास नहीं पहुंची है। जैसे ही यह कॉपी उनके पास आती है, उसके बाद आगे निर्णय लिया जाएगा।
शासन ने अधिकार पर लगा दी थी रोक
फॉरेस्ट चीफ के तौर पर पुनः नियुक्ति के बाद भी सरकार ने राजीव भरतरी के ख़िलाफ़ रवैया सख्त ही रखा। विभागीय मुखिया के रूप में उनके सभी अधिकारों पर रोक लगा दी गई है। यहां तक कि दोबारा विभागीय मुखिया बनने के अगले ही दिन दस रेंजरों के जो तबादले उन्होंने किए थे, उन्हें भी शासन ने निरस्त कर दिया था।
भरतरी ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद को वन विभाग में मुखिया का पद संभाला था। इसके अगले ही दिन उन्होंने दस रेंजरों के तबादले कर दिए थे। इन तबादलों पर वन सचिव विजय कुमार ने रोक लगा दी। साथ ही एक आदेश जारी कर भरतरी को आगे शासन की अनुमति के बिना कोई भी तबादला न करने के निर्देश दिए। भरतरी, पाखरो प्रकरण, कार्बेट में कंडी रोड, मोरघट्टी वन विश्राम गृह, कार्बेट में अवैध निर्माण, राजाजी पार्क में अनियमितताओं के मामलों की फाइलें भी नहीं देख पाएंगे। आदेश में साफ कहा गया है कि इन मामलों में पूर्व में अधिकारियों ने उन्हें जानकारी दी थी, बावजूद इसके उन्होंने कार्रवाई नहीं की, इसलिए अब वह कोई भी कार्रवाई नहीं करेंगे। एनजीटी या सुप्रीम कोर्ट से नहीं कर सकेंगे पत्राचार उनके एनजीटी, सुप्रीम कोर्ट, एनटीसीए, सेंट्रल जू अथारिटी, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट की सीईसी से पत्राचार करने भी रोक लगाई गई है। पीसीसीएफ इन सभी में वाइल्ड लाइफ शासन की अनुमति के बाद ही पत्राचार कर सकेंगे। भरतरी ने पूर्व में विभागीय मुखिया के पद से हटने के बाद पाखरो प्रकरण में इन संस्थाओं के साथ पत्राचार करते हुए सरकार को ही कठघरे पर खड़ा किया गया था।