1-
*त्याग धर्म है और दान पुण्य है।*
2-
*त्याग शुद्धभाव है और दान शुभ भाव।*
3-
*त्यागी के रंचमात्र परिग्रह नहीं होता और दानी के ढेर सारा परिग्रह होता है।*
4-
*त्याग अनुपयोगी, अहितकारी वस्तु का किया जाता है और दान उपयोगी और हितकारी वस्तु का किया जाता है*।
5-
*त्याग किया जाता है और दान दिया जाता है।*
6-
*त्याग खोटी चीज का किया जाता है और दान अच्छी चीज का दिया जाता है।*
7-
*त्याग में स्व उपकार का भाव मुख्य रहता है और दान में परोपकार का मुख्य रहता है।*
8-
*त्याग स्वाधीन क्रिया है और दान पराधीन क्रिया है।*
9-
*दानी से त्यागी बड़ा होता है, क्योंकि त्याग धर्म है और दान पुण्य।*
10-
*दान के लिए तीन का होना जरूरी है – देने वाला, लेने वाला और देने वाली वस्तु जबकि त्याग में ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपके पास नहीं है उसका त्याग किया जाता है। जैसे -मैं तीन लोक की संपदा का त्याग करता हूं।*
11-
*कुछ का त्याग ही होता है,दान नहीं जैसे – राग -द्वेष, मां- बाप, स्त्री पुत्र आदि।*
*कुछ का दान ही होता है,त्याग नहीं जैसे – ज्ञान दान और अभय दान।*
*कुछ का त्याग भी होता है और दान भी.जैसे-आहार दान और आहार त्याग, औषधि दान और औषधि त्याग।*
12-
*त्याग शुद्धात्मा के ग्रहण पूर्वक मोह- राग- द्वेष होता है और दान उत्तम, श्रेष्ठ वस्तु को सुपात्र जीवों को प्रदान करने पर होता है।*
13-
*ज्ञान से त्याग और त्याग से शांति मिलती है और उत्तम दान से भोग भूमि का सुख मिलता है।*
14
*सुपात्र जीवों को श्रद्धा पूर्वक दिया गया दान ही मोक्षमार्ग में सहकारी होता है। मिथ्यादृष्टि, कुपात्र और अपात्र जीवों को दान करूणा भाव से दिया जाता है। जो कुभोगभूमि में जाने का कारण बनता है ।*
*त्याग में नाम, काम,दाम और धाम से मोह छोड़ना पड़ता है, जो मुक्ति का कारण है।*
15
*त्याग पर में नहीं अपने ज्ञान में होता है।पर को पर जानकर,स्व को स्व मानकर, पर से विरत हो जाना और अपने में रत होना त्याग है।*
*दान अपने आत्मस्वरूप से भिन्न परवस्तु जो न्याय -नीति , पुण्योदय से प्राप्त होती है ऐसे श्रेष्ठ, उत्तम वस्तु पात्र जीवों को दी जाती है। जो आत्मकल्याण में सहायक होती है।*
16
*निरभिमानी होकर ही दान दिया जाता है , आत्मप्रशंसा के उद्देश्य से दिया दान, दान नहीं है।*
*त्याग भी आत्मानंद,कर्मक्षय और आत्मलाभ के लिए किया जाता है, आत्मप्रशंसा के लिए नहीं।*
17-
*ज्ञान, आहार , औषधि और अभय आदि चार दान के अतिरिक्त दान के पांच भेद और आते हैं -* *पात्रदत्ति,दयादत्ति, समदत्ति,अन्वयदत्ति और सकलदत्ति।*
*त्याग निज शुद्धात्मा के ग्रहण पूर्वक आभ्यंतर (14) और बाह्य परिग्रह (10)का किया जाता है।*
18-
*दान छिपा -छिपा कर किया जाता है, छपा -छपा कर नहीं. दान का और त्याग का प्रदर्शन नहीं होता है। जहां प्रदर्शन, प्रसिद्धि का भाव है वहां धर्म भी नहीं और पुण्य भी नहीं होता।*
*डॉ अशोक जैन गोयल दिल्ली*