डॉ0 हरीश चन्द्र अन्डोला
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ;आइसीएमआर की ओर से एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर किए एक अध्ययन में बहुत ही डरावनी तस्वीर सामने आई है। अध्ययन के अनुसार ऐसी आशंका है कि ज्यादातर मरीजों पर एंटीबायोटिक दवायें काम ही नहीं कर रहीं है क्योंकि इन मरीजों में इस दवा के प्रति सूक्ष्म जीवाणु रोधक ;एंटीमाइक्रोबियल क्षमता विकसित हो गई है।पिछले कुछ दशकों से दुनिया भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेन्स ;एएमआर बड़ी तेजी से पैर पसार रहा है। जो स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। यदि स्वास्थ्य के लिहाज से देखें तो एंटीबायोटिक दवाएं किसी मरीज की जान बचाने में अहम भूमिका निभाती है पर जिस तरह से स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में इनका धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है उसने एक नई समस्या को जन्म दे दिया है जिसे रोगाणुरोधी प्रतिरोध के रुप में जाना जाता है। जो दवाएं हमें रोग या पीड़ा से बचाती हैं और अक्सर जीवनरक्षक होती हैं यदि हम उनका दुरुपयोग करेंगे तो वह रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु पर असर नहीं करेंगी और रोग लाइलाज तक हो सकता है। यदि दवाएं बेअसर हो जायेंगी तो ऐसे में रोग के उपचार के लिए नयी दवा चाहिए होगी और यदि नई दवा नहीं है तो रोग लाइलाज हो सकता है।
अनेक ऐसे गंभीर और साधारण संक्रमण हैं जिनका इलाज मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि दवाओं का दुरुपयोग हो रहा है।एक नयी दवा को शोध से रोगग्रस्त इंसान के उपचार तक पहुंचने में सालों लग जाते हैं और अत्यधिक व्यय भी होता है। लापरवाही से हो रहे अनुचित दवाओं के दुरुपयोग के कारण हम प्रभावकारी दवाओं को क्यों खो देना चाहते हैं ,रोगाणुरोधी प्रतिरोध ;एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस के कारण दुनिया में 50 लाख से अधिक लोग एक साल में मृत होते हैं। विश्व बैंक की 2017 रिपोर्ट के अनुसार यदि दवा प्रतिरोधकता पर अंकुश नहीं लगाया गया तो 2050 तक इससे हर साल रुपये 1200 खरब तक का आर्थिक नुक़सान होगा। विश्व बैंक का आंकलन है कि 2030 तक दवा प्रतिरोधकता के कारण लगभग 3 करोड़ अधिक लोग ग़रीबी में डूब सकते है ।अपनी आप बीती साझा करते हुए वनेसा कार्टर ने बताया कि कैसे रोगाणुरोधी प्रतिरोध ने उनके पूरे जीवन की दिशा ही बदल दी। रोगाणुरोधी प्रतिरोध से जूझने में उनके कम से कम 10 साल चले गये। अब वह बहादुरी से रोगाणुरोधी प्रतिरोध के ख़िलाफ़ जागरूकता अभियान में प्रयासरत हैं।2004 में वह 25 साल की थीं जब दक्षिण अफ़्रीका में वह एक भयानक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से चोटिल हो गयीं थीं। उनको सड़क के किनारे ही जीवन रक्षक प्राथमिक उपचार दिया गयाए लाइफ सपोर्ट पर रखा गयाए चेहरे पर अनेक फ्रैक्चर थे और एक आंख तक हमेशा के लिए चली गई थी। सर में गंभीर चोट थी पेल्विस की हड्डी टूट गई थी और रीढ़ को भी चोट लगी थी। चेहरे पर सबसे गंभीर चोटें थीं जिनसे उभरने में उनको 10 साल लग गये थे। अनेक आपरेशन के बाद उनको अनेक इंप्लांट लगे थे।इस दुर्घटना के छह साल बादए वह अस्पताल से विदा हुईं। एक दिन बाज़ार में उनको महसूस हुआ कि चेहरे पर नमी है। जब आईने में चेहरा देखा तो पूरे चेहरे पर नमी नहीं मवाद था। तुरंत उनको अस्पताल की आकस्मिक सेवा में भर्ती किया गया क्योंकि चेहरे में इंप्लांट के पास गंभीर संक्रमण हो गया था। अनेक आपरेशन पर आपरेशन हुए अनेक विशेषज्ञ चिकित्सकों ने उनका इलाज कियाए और अंततः उनको रोगाणुरोधी प्रतिरोधक एमआरएसए संक्रमण निकला जिसका इलाज दवा प्रतिरोधकता के कारण बहुत जटिल हो गया था आम दवाएं बेअसर थीं।एक साल तक उनके सभी आपरेशन स्थगित किए गए क्योंकि उनपर एंटीबायोटिक काम ही नहीं कर रही थी। उनको अपना चेहरा छुपाना पड़ रहा था क्योंकि वह नक़ली आंख तक नहीं लगा पा रही थीं। वह अपने बच्चे को स्कूल से लेने भी नहीं जा सकती थीं क्योंकि अन्य बच्चे उनको देख के डर जाते थे।वेनेसा कार्टर ने सीएनएस ;सिटिज़न न्यूज़ सर्विसद्ध को बताया कि उनकी लगभग सेप्सिस के कारण मृत्यु होते होते बची और अब वह ठीक तो हैं परंतु सारी उम्र शारीरिक विकृति और बिगड़े हुए चेहरे के साथ जीवित रहेंगी.इसके लिए कुछ हद तक दुर्घटना ज़िम्मेदार है परंतु काफ़ी हद तक एमआरएसए संक्रमण ज़िम्मेदार है जिसके इलाज के लिए कोई दवा सालों तक काम ही नहीं कर रही थी।विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉण् फ़िलिप मैथ्यू ने एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस पर तीसरे वैश्विक मीडिया फोरम में कहा कि दवाओं के दुरुपयोग के कारणए रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणुए प्रतिरोधकता विकसित कर लेते हैं और दवाओं को बेअसर करते हैं। दवा प्रतिरोधकता की स्थिति उत्पन्न होने पर रोग का इलाज अधिक जटिल या असंभव तक हो सकता है। साधारण से रोग जिनका पक्का इलाज मुमकिन है वह तक लाइलाज हो सकते हैं। इसको एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस या रोगाणुरोधी प्रतिरोध कहते हैं। दवाओं का अनुचित और अनावश्यक दुरुपयोग सिर्फ़ मानव स्वास्थ्य में ही नहीं हो रहा हैए बल्कि पशु स्वास्थ्य और पशु पालनए कृषि और खाद्य वर्गए में भी दवाओं का दुरुपयोग हो रहा है।इसीलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि न सिर्फ़ मानव स्वास्थ्य में बल्कि सभी वर्गों में दवाओं के अनुचितए अनावश्यक या दुरुपयोग पर पूर्ण रोक लगे जिससे कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर अंकुश लग सके। मुख्यतरू मानव स्वास्थ्य के साथ.साथए पशु स्वास्थ्य और पशु पालनए कृषि और खाद्यए और पर्यावरण से जुड़े वर्गों को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी स्तर पर और किसी भी रूप मेंए दवाओं का अनुचितए अनावयश्यक या दुरुपयोग नहीं हो। इस व्यापक अन्तर.वर्गीय प्रयास को ष्वन हेल्थष् भी कहते हैं।संयुक्त राष्ट्र की कृषि और खाद्य संस्था के इमैनुएल क़ाबली ने कहा कि कृषि और खाद्य प्रणाली में हर स्तर परए दवाओं के अनुचितए अनावश्यक या दुरुपयोग पर रोक लगाना सर्व हितकारी है। खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए दवाओं का अनावश्यकए अनुचित या दुरुपयोग को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है। उनका मानना है कि कृषि संबंधित जैव विविधिता और पारिस्थितिक तंत्र को नाश होने के कारण भी दवाओं का अनावश्यकए अनुचित या दुरुपयोग बढ़ा है। इसके कारण रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु दवा प्रतिरोधक हो रहे हैं। पशु पालन हो या कृषि से जुड़ा क्षेत्रए हर जगह दवाओं का उचित और आवश्यक उपयोग ही हो और किसी भी प्रकार की लापरवाही न बरती जाये।वर्ल्ड ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर एनिमल हेल्थ ;पशु स्वास्थ्य के लिए वैश्विक संस्थाद्ध की हेवियर यूजरोस मार्कोज़ का कहना है कि पशुपालन में संक्रमण नियंत्रण असंतोषजनक होने परए दवाओं का अत्यधिक अनावश्यकए अनुचित दुरुपयोग होता आया है जो पूर्णतरू ग़लत है। सर्वप्रथम तो पशुपालन में संक्रमण नियंत्रण संतोषजनक होना चाहिए।युगांडा की पर्यावरण राज्य मंत्री ने कहा कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध की सबसे अधिक मारए वैश्विक दक्षिण के देश झेल रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के फ़िलिप मैथ्यू ने कहा कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध को ष्शांत महामारीष् कहना सही नहीं है क्योंकि उसके कारण 50 लाख से अधिक लोग हर साल मृत हो रहे हैं। वैश्विक जन स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक रोगाणुरोधी प्रतिरोध है।यह डॉक्टरोंए नीति निर्माताओंए ड्रग निर्माताओंए स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्रए के साथ आम लोगों की भी जिम्मेवारी है कि वो इन एंटीबायोटिक के बढ़ते दुरूपयोग को रोकने में अपना सहयोग दें। रिपोर्ट के मुताबिक रोगाणुरोधी प्रतिरोध की चुनौती पर पार पाने के लिए विविध क्षेत्रों में जवाबी कार्रवाई की जरूरत होगी। ऐसा करते समय आम लोगोंए पशुओंए पौधों और पर्यावरण के स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखना जरूरी है। देखा जाए तो इन सभी का स्वास्थ्य आपस में गहराई से जुड़ा है और यह सभी एक दूसरे पर निर्भर है।इसी को ध्यान में रखते हुए यूनेपए एफएओए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वन हेल्थ फ्रेमवर्क जारी किया है। रिपोर्ट में पर्यावरण को होते नुकसान और पैदा होते रोगाणुरोधी प्रतिरोध को रोकने के लिए जो समाधान प्रस्तुत किए गए हैं उनमें साफ.सफाई की खराब व्यवस्थाए सीवरए कचरे से होने वाले प्रदूषण से निपटने और साफ पानी जैसे मुद्दों से कारगर तरीके से निपटने की वकालत की गई है।सीएसई ने भारत में स्वास्थ्य पर रोगाणुरोधी प्रतिरोध के पडते प्रभावों और उसे रोकने एवं नियंत्रित करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा क्या कदम उठाए जा सकते हैं उसको लेकर एक नई रिपोर्ट भी जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार इस संकट से निपटने के लिए स्वास्थ्यए पशुधनए मत्स्य पालनए फसल और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में एकजुट प्रयासों की दरकार है। है।लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।