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*जैन-धर्म की आन- बान और शान संपूर्ण विश्व में अद्वितीय और बेमिसाल है। भले ही जैन-धर्म के अनुयायियों की संख्या विश्व में सबसे कम है परन्तु  इसके सिद्धांत और प्रयोग बहुत वैज्ञानिक और व्यवहारिक हैं। कोहिनूर हीरा के ग्राहक विश्व में सर्वाधिक नहीं होते, कोई विरला पारखी ही होता है। धर्म की महत्ता संख्या से नहीं, उनकी गुणवत्ता (क्वालिटी) से है।*

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*कोई भी किसी भी जाति -कुल-गोत्र – धर्म में पैदा होने वाले जैन-धर्म की आराधना और मान्यता कर सकते हैं। प्राणीमात्र का यह धर्म है।  सुख-शांति से जिओ और सभी को सुख -शांति से जीने दो की प्ररेणा /शिक्षा यहीं पर दी जाती है।*

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*विश्व की सभी आत्माएं समान है , एक जैसे स्वभाव से भरपूर हैं पर एक नहीं है और कोई छोटी -बड़ी नहीं है और कोई किसी का कर्ता -धर्ता-हर्ता नहीं है, सभी साथ में रहते हुए सब स्वतंत्र, स्वाधीन और भिन्न-भिन्न है, भगवान जन्मते नहीं,भगवान अपने आत्म पुरूषार्थ को जागृत कर बनते हैं- यह घोषणा तीर्थंकर भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ/गणधरों , मुनियों, ज्ञानी भव्य जीवों और सौ इन्द्रों की उपस्थिति में समवशरण (धर्म- सभा) में की है।*

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 *जैन-धर्म खुद तो जबर्दस्त है पर वह किसी के साथ जबर्दस्ती कभी नहीं करता। इस धर्म को समझने के लिए दिमाग के साथ शांत और कोमल दिल भी होना चाहिए।* 

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*व्यवहार में अहिंसा, विचारों में अनेकांत, वाणी में स्याद्वाद और जीवन में अपरिग्रह – यही जैन-धर्म है।  प्रत्येक वस्तु की अनादि -अनंतता, स्वतंत्रता, सार्थकता और स्वावलंबी बनाने की उद्घोषणा विश्व में यही धर्म करता है।*

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*परमात्मा की उपासना परमात्मा बनने के प्रयोजन से है। परमात्मा का दर्शन परमात्मा को खुश करने के लिए नहीं अपितु आत्मानुभूति के लिए है। परमात्मा का नाम और जाप आत्मविश्वास को बढ़ाने और चित्त की एकाग्रता और स्थिरता के लिए है।मांगना, लेना -देना,*

*भिखारीपन की प्रवृत्ति,गुलामी और दासता का यहां कोई काम  और स्थान नहीं है।*

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*आत्मानंद के लिए परमात्मा की भक्ति की जाती है। सभी जिनालय शिक्षालय है, भिक्षालय नहीं है।*

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*जैन-धर्म का सार यदि एक शब्द में कहना है तो वह शब्द है – वीतरागता।* *वीतरागता और अहिंसा एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।*

*वीतरगता ही सर्वज्ञता का मूल कारण है।*

*जैन-धर्म में व्यक्ति की नहीं,  व्यक्तित्व अर्थात् आत्मिक गुणों की पूजा की जाती है।*

 *अप्पा सो परमप्पा -यह जैन-धर्म का मूल मंत्र है। यह धर्म अपने अनुयायियों को सिर्फ भक्त बनाकर नहीं रखता, बल्कि उसे परमात्मा बनने का पूर्ण अधिकार देता है। नर में नारायण, भक्त में भगवान, पामर में परमात्मा देखने का विधान /प्रयोग इसी धर्म में है।*

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*जैन-धर्म कोहिनूर हीरा है मगर दुर्भाग्य है कि आज वह वणिक समाज  के हाथों में कैद है। जिन्हें अपने अनमोल धर्म की  शिक्षा संपूर्ण विश्व में प्रचारित करने की  फुर्सत ही नहीं है। धन कमाने की होड़  और मान कषाय की पूर्ति में लिप्त होने से धर्ममय जीवन जीने और उसके प्रचार -प्रसार की ओर ध्यान ही नहीं है।*

*इससे बढ़िया और सर्वोत्तम धर्म विश्व में कोई नहीं है, जहां बाह्य आडम्बर और थोथे क्रिया कांड की उपासना नहीं होती। मात्र वीतरागता और सर्वज्ञता को पूजा जाता है।*

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*किसी ने सही कहा है* –

*कोई चांद को पूजे, कोई सूरज पूजन जाता है।*

*हम जैनी उनको पूजे जो वीतराग- सर्वज्ञ कहलाता है।*

*तीर्थंकर चौबीस हमारे, जैन-धर्म से नाता है।*

*दुनिया में बस यही धर्म जो मोक्षमार्ग पर चलना सिखलाता है।।*

*इस धर्म को सभी जाने, पहचाने और आचरण में लाएं।*