पोखरण में किए थे पांच परमाणु परीक्षण
भारत ने उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजस्थान के पोखरण में तीन परमाणु बमों का एक साथ परीक्षण किया था। इस परीक्षण को भारत के अनुसंधान विभाग ने शक्ति नाम दिया था। इसके ठीक 2 दिन बाद यानी 13 मई को दोबारा दो और परमाणु बमों का परीक्षण किया गया। जिसके बाद से भारत का नाम भी परमाणु संपन्न देशों की लिस्ट में शामिल हो गया। पहले जो देश भारत को कम आंकते थे वो भी भारत की तारीफ कर रहे थे। पोखरण में हुए इस परमाणु बम का परीक्षण पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में हुआ था। इस उपलब्धि के ठीक एक साल बाद यानी साल 1999 से 11 मई के दिन को नेशनल टेक्नॉलजी डे के रूप में मनाया जाने लगा। परमाणु बमों के परीक्षण की वजह से तो यह दिन खास है ही लेकिन इस दिन एक और ऐसी उपलब्धि भारत ने हासिक की थी जिसकी वजह से 11 मई का ही दिन इसके सेलिब्रेशन के लिए चुना गया और वो है डिफेंस रिसर्च एंड डेवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन का त्रिशूल मिसाइल का सफल परीक्षण। त्रिशूल शॉर्ट रेंज की मारक क्षमता वाली एक ऐसी मिसाइल है, जो अपने लक्ष्य पर तेजी से हमला करती है। इसके अलावा इसी दिन भारत के पहले एयरक्राफ्ट ने भी उड़ान भरी थी। जिसे नेशनल एयरोस्पस लैब ने तैयार किया था। दो सीटर वाले इस हल्के विमान को पायलटों को ट्रेनिंग देने, हवाई फोटोग्राफी करने और पर्यावरण संबंधी प्रोजेक्ट्स के लिए इस्तेमाल करने के मकसद से बनाया गया था।
परमाणु परीक्षण की सफलता के बाद तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था ‘आज भारत ने पोखरण में भूमिगत परीक्षण किया।’ अटलजी तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस के साथ खुद परीक्षण स्थल पर गए थे। इस परीक्षण से भारत का सीना चौड़ा हो गया और वह घोषित रूप से परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया था। तब अटलजी ने नारा दिया था- ‘जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान। अटल सरकार ने पोखरण-2 परीक्षण की समूची व्यूह रचना इतनी गुप्त रखी कि अमेरिका व उसके उपग्रह तक गच्चा खा गए थे। किसी को कानों-कान खबर नहीं लगी कि भारत इतना बड़ा कदम उठा रहा है। हालांकि विरोध स्वरूप अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने भारत पर सख्त पाबंदियां लगाई थी। सिर्फ इस्राइल ने भारत का साथ दिया था। भारत के परमाणु शक्ति संपन्न होने की दिशा में काम तो वर्ष 1945 में ही शुरू हो गया था, जब होमी जहांगीर भाभा ने इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की नींव रखी। लेकिन सही मायनों में इस दिशा में भारत की सक्रियता 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बढ़ी। इस युद्ध में भारत को शर्मनाक तरीके से अपने कई इलाके चीन के हाथों गंवाने पड़े थे। इसके बाद 1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण कर महाद्वीप में अपनी धौंसपंट्टी और तेज कर दी। दुश्मन पड़ोसी की ये हरकतें भारत को चिंतित व विचलित कर देने वाली थीं। लिहाजा सरकार के निर्देश पर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने प्लूटोनियम व अन्य बम उपकरण विकसित करने की दिशा में सोचना शुरू किया।
भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज किया और 1972 में इसमें दक्षता प्राप्त कर ली। 1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के पहले परमाणु परीक्षण के लिए हरी झंडी दे दी। इसके लिए स्थान चुना गया राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित छोटे से शहर पोखरण के निकट का रेगिस्तान और इस अभियान का नाम दिया गया मुस्कुराते बुद्ध। इस नाम को चुने जाने के पीछे यह स्पष्ट दृष्टि थी कि यह कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए है।18 मई 1974 को यह परीक्षण हुआ। परीक्षण से पूरी दुनिया चौंक उठी, क्योंकि सुरक्षा परिषद में बैठी दुनिया की पांच महाशक्तियों से इतर भारत परमाणु शक्ति बनने वाला पहला देश बन चुका था। पहले परमाणु परीक्षण के बाद 24 साल तक अंतरराष्ट्रीय दबाव व राजनीतिक नेतृत्व में इच्छाशक्ति के अभाव में भारत के परमाणु कार्यक्रम की दिशा में कोई बड़ी हलचल नहीं हुई। 1998 में केंद्रीय सत्ता में राजनीतिक परिवर्तन हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। वाजपेयी ने अपने चुनाव अभियान में भारत को बड़ी परमाणु शक्ति बनाने का नारा दिया था। सत्ता में आने के दो महीने के अंदर ही उन्होंने अपने इस वादे को मूर्त रूप देने के लिए परमाणु वैज्ञानिकों को यथाशीघ्र दूसरे परमाणु परीक्षण की तैयारी के निर्देश दिए।चूंकि इससे पूर्व 1995 में भारत की परमाणु तैयारियों की भनक अमेरिका को लग चुकी थी। इसलिए इस बार अभियान की तैयारियों को पूरी तरह गोपनीय रखा गया। केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई सदस्यों तक को इसके बारे में पता नहीं था। पूरे अभियान की रणनीति में कुछ वरिष्ठ वैज्ञानिक, सैन्य अधिकारी व राजनेता ही शामिल थे।एपीजे अब्दुल कलाम, राजगोपाल चिदंबरम अभियान के समन्वयक बनाए गए। उनके साथ डॉ. अनिल काकोदकर समेत आठ वैज्ञानिकों की टीम सहयोग कर रही थी। अभियान की जमीनी तैयारियों में 58 इंजीनियर्स रेजीमेंट ने सहयोग किया।चूंकि अब भारत की परमाणु दक्षता उच्च स्तरीय हो चुकी थी और दुनिया को यह दिखाने का समय आ चुका था कि वह भारत की ताकत को कमतर करके न आंके, इसलिए इस अभियान का नाम शक्ति रखा गया। बाद में 11 मई व इसके बाद भारत ने पोखरण में दूसरे परमाणु परीक्षण किए। कुल पांच डिवाइस का परीक्षण किया गया। इस परीक्षण की सफलता के लिए प्रधानमंत्री ने पूरी टीम को बधाई दी।
इस परीक्षण की सफलता पर भारतीय जनता ने भरपूर प्रसन्नता जताई। लेकिन दुनिया के दूसरे मुल्कों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। एकमात्र इजरायल ही ऐसा देश था, जिसने भारत के इस परीक्षण का समर्थन किया। इन परीक्षणों के ठीक 17 दिन बाद पाकिस्तान ने 28 व 30 मई को चगाई-1 व चगाई- 2 के नाम से अपने परमाणु परीक्षण किए। जापान व अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लागू कर दिए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव पारित कर भारत व पाकिस्तान की निंदा की।भारत आज अपने दम पर मिसाइल रक्षा कवच विकसित करने में भी सफल हो गया है। भारत को विश्वशक्ति बनने के लिए दूसरों से श्रेष्ठ हथियार प्रौद्योगिकी विकसित करनी होगी। अगर सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ हम लगातार अपनी प्रौद्योगिकी जरूरतों को पूरा करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाएं तो हम शीघ्र ही आत्मनिर्भर हो सकते हैं। अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर आज हम अपने उत्कृष्ट वैज्ञानिक और उनके प्रयासों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मौत के साथ एक राजनीति युग की समाप्ति हो गयी है. इतिहास उन्हें जिन अनगिनत मकामों को हासिल करने के लिए याद करेगा उसमें से एक बेहद अहम तारीख होगी 11 मई 1998 की. ये वो तारीख है जब वाजपेयी के सपनों और हिम्मत ने देश को दुनिया के ताकतवर देशों की बराबरी पर ला खड़ा किया. राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण कर अटल बिहारी ने दुनिया को भारत की शक्ति का एहसास कराया. उस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी किस तरह पोखरण से अच्छी खबर का इंतजार कर रहे थे इसका जिक्र अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रक्षा, वित्त और विदेश मंत्री जशवंत सिंह ने पोखरण परीक्षण का जिक्र अपनी किताब ‘ए कॉल ऑफ हॉनर’ में किया है.
लेखक के निजी विचार हैं .
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोल (दून विश्वविद्यालय)