“जमीं जंगल औ नदियों की तिजारत कौन करता है।
जरा सोचो कि नोटों की सियासत कौन करता है।

यह शेर हमारे दौर के लोकप्रिय गजलकार बल्ली सिंह चीमा की पुस्तक से लिया गया है। यह पुस्तक जल्द आपके हाथों में होगी। इससे पहले भी बल्ली सिंह चीमा के कई गजल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी कई रचनाएं लोगों के जुबान पर रहती हैं। शायद ही कोई आंदोलन हो जिसमें उनका गीत “ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के…” न गाया जाता हो।

बल्ली सिंह चीमा की गज़लें इश्क और दर्द की परंपरा से बाहर, एक संवेदनशील नागरिक की प्रतिक्रियाएँ हैं। ये प्रतिक्रियाएँ व्यवस्था के विरुद्ध हैं, पर कभी-कभी अभिव्यक्ति के लिए स्पष्टता और सूक्ष्मता के लिए संज्ञाओं का सहारा भी लिया गया है। इनकी गजलें और शेर राजनीतिक समझ और आस-पास के वातावरण से उपजी हैं| जनपक्षीय राजनीतिक और आस-पास के परिवेश के चित्र उभारने के कारण चीमा जी का यह संग्रह जन सरोकारों से ओत-प्रोत है|

बल्ली सिंह चीमा जी का यह गजल संग्रह जुलाई माह के पहले सप्ताह तक उपलब्ध होगा|