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- भारतीय राजनीति ने कई पार्टियों का राज देखा है और कई तरह के उतार चढ़ाव भी देखे हैं। आजादी के बाद पहले तीन दशक तक कांग्रेस युग देखा है तो उसके बाद कांग्रेस का पराभव, समाजवादी युग, गठबंधन का दौर और भाजपा युग का आगाज देखा है। भारतीय राजनीति के मौजूदा दौर को भाजपा युग कहा जा सकता है। वैसे अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते भाजपा छह साल तक सत्ता में रही थी, लेकिन वह भाजपा युग नहीं था। भाजपा का मौजूदा नेतृत्व खुद भी उसे अपना राज नहीं मानता है। तभी 70 साल में कुछ नहीं होने की बात कही जा रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान भी बार बार यह दोहराया जा रहा है कि पिछले पांच साल में जितना काम हुआ है, उतना 70 साल में नहीं हुआ है। जैसे कांग्रेस पीवी नरसिंह राव के पांच साल के राज को अपना नहीं मानती है, उसी तरह भाजपा वाजपेयी राज के छह साल को अपना नहीं मानती है।वैसे भी वे छह साल गठबंधन की राजनीति के प्रयोग का दौर था। उससे ठीक पहले दो साल में गठबंधन की दो सरकारें विफल हुई थीं। 1996 से 1998 तक एचडी देवगौड़ा और आईके गुजराल की सरकार चली थी। इन दोनों सरकारों के जल्दी जल्दी गिर जाने के बाद गठबंधन की राजनीति का यह सूत्र ईजाद किया गया कि सबसे बड़ी पार्टी का नेता प्रधानमंत्री बनेगा तभी सरकार चल सकती है। अटल बिहारी वाजपेयी इस सूत्र के सहारे सरकार चलाते रहे और बाद में मनमोहन सिंह ने भी इसी सूत्र के सहारे सरकार चलाई।अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ साथ असल में भाजपा युग का आगाज हुआ है। पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है। लोकसभा में भाजपा को अकेले दम पर बहुमत है और वह राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। ये दोनों घटनाएं पहली बार हुई हैं। राज्यसभा में पहली बार कोई गैर कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी है। अभी तो भाजपा का सिर्फ एक सांसद ज्यादा है, लेकिन धीरे धीरे यह अंतर बढ़ता जाएगा और 2018 के दोवार्षिक चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस के बीच अंतर बहुत बड़ा हो गया है । कांग्रेस 50 सीट से नीचे आ चुकी है और भाजपा 70 सीट से ऊपर। जब हम भाजपा युग की बात करते हैं तो संसद के दोनों सदनों में भाजपा की ताकत बढ़ने के अलावा यह तथ्य भी रेखांकित करना होगा कि पहली बार राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर भाजपा के हैं। शीर्ष चार पदों से पहली बार कांग्रेस साफ हुई है। इस समय देश के 13 राज्यों में भाजपा का मुख्यमंत्री है और पांच राज्यों में सहयोगी पार्टी का मुख्यमंत्री है। इनमें से दो जगह उसके उप मुख्यमंत्री हैं। दो चार अपवादों को छोड़ दें तो हर राज्य में भाजपा का नियुक्त किया हुआ राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेशों में उप राज्यपाल है। भाजपा के सदस्यों की संख्या 12 करोड़ पहुंच गई बताते हैं।संवैधानिक पदों पर बैठे भाजपा नेताओं की संख्या के आधार पर ही कहा जा सकता है कि यह भाजपा युग है। लेकिन सवाल है कि क्या आजादी के बाद पहले तीन दशक में कांग्रेस का युग चलता रहा तो वह सिर्फ संख्या की वजह से था या और भी कुछ कारण थे? निश्चित रूप से सिर्फ संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की संख्या, मुख्यमंत्रियों या राज्यपालों की संख्या आदि के आधार पर कांग्रेस का युग दशकों तक नहीं चला था। कांग्रेस का युग चलने के और भी कई कारण थे। कांग्रेस ने पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आइडिया ऑफ इंडिया को लागू किया था। देश को सेकुलर और लोक कल्याणकारी बनाने का प्रयास किया था। साहित्य, विज्ञान, कला, संस्कृति आदि की संस्थाएं खड़ी की थीं। आर्थिकी का एक अलग ढांचा खड़ा किया था, जिसमें रेल और हवाई जहाज चलाने से लेकर शिक्षा व स्वास्थ्य सबका जिम्मा सरकार का था।भाजपा क्या कोई ऐसा वैकल्पिक ढांचा खड़ा कर सकती है, जो कांग्रेस से अलग हो और जिसे भाजपा अपना क्रिएशन कह सके? अगर ऐसा होता है तभी भाजपा युग के बीज भारत में डालेंगे। ११ अप्रेल से लोकसभा के चुनाव प्रारंभ हो रहे हैं अभी तक तो भाजपा के पास संख्या थी। उसके ज्यादा सांसद, ज्यादा विधायक सत्ता में थे तो चोतरफा उसके राग गाए जा रहे हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि वह इसे सांस्थायिक रूप क्यों नहीं दे पायी ? वह ऐसे बीज डालने में क्यों नहीं हुई कि जिससे पीढ़ियों तक उसके युग की आहट सुनी जा सके. दुर्भाग्य से अभी तक तो ऐसा कुछ होता नहीं दिखा । भाजपा की सरकार आने के बाद वैचारिक स्तर पर या राजनीति से इतर दूसरे क्षेत्रों में जो बदलाव रहे हैं उन्हें सकारात्मक नहीं कहा जा सकता। जिन चीजों के दम पर कोई सभ्यता, संस्कृति या कोई विचार स्थायी होता है, उनका सर्वथा अभाव दिखा है। सरकार बनाना और सरकार में बने रहना एक अलग चीज है लेकिन विरासत खड़ी करना बिल्कुल अलग चीज है। जब तक भाजपा के हुक्मरान इन बातों को नहीं समझेंगे तब तक वे अपने युग की बुनियाद मजबूत नहीं कर सकेंगे।